स्पाइना बिफ़िडा

From Cross the Hurdles


स्पाइना बिफ़िडा तंत्रीकीय नाल की विकृति (एनटीजी) है। इस इस शब्द का अर्थ है दरार युक्त रीढ़ या मेरु रज्जु का पूरी तरह घिरा हुआ न होना। स्पाइना बिफ़िडा का सबसे गंभीर रूप वह होता है जिसमें दरार वाली जगह के नीचे की पेशियां कमज़ोर हो जाती हैं या उसके नीचे के हिस्से में लकवा मार जाता है, संवेदनशीलता ख़त्म हो जाती है और मल-मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण नहीं रह जाता।

आमतौर पर (हल्के से गंभीर तक) तीन तरह के स्पाइना बिफ़िडा होते हैं:

1. स्पाइना बिफ़िडा ओक्युल्टा: मेरुरज्जु की एक या एक से अधिक कसेरुकाओं (हड्डियों) में एक छिद्र मेरुरज्जु को किसी प्रत्यक्ष क्षति के बिना।

2. मेनिंगोसील: मेनिंजेज़ या मेरुरज्जु के गिर्द का सुरक्षा कवच कसेरुका के छिद्र से दबाव के कारण थैली के रूप में बाहर आ जाता है जिसे मेनिंगोसील कहा जाता है। मेरुरज्जु सुरिक्षत रहती है; तंत्रिका पथ को मामूली क्षति के साथ या बिना कोई क्षति पहुंचाये इसकी मरम्मत की जा सकती है।

3. माइलोमेनिंगोसील: यह सबसे गंभीर किस्म का स्पाइना बिफ़िडा है, जिसमें मेरुरज्जु का एक हिस्सा स्वयं ही पीठ की तरफ़ से बाहर निकल आता है। कुछ मामलों में पुटिका त्वचा से ढंकी रहती है, तो कुछ में ऊतक और तंत्रिकाएं अनावृत हो जाती हैं।

शेष दोनों तरह के स्पाइना बिफ़िडा मिनिंगोसील और माइलोमेनिंगोसील को सामूहिक रूप से स्पाइना बिफ़िडा मैनिफेस्टा कहा जाता है और हजार में से एक व्यक्ति को होता है। माइलोमेनिंगोसील में आमतौर पर मस्तिष्क में तरल जमा हो जाता है (जिसे हाइड्रोसिफ़ैलस या शिरशोथ कहा जाता है)। माइलोमेनिंगोसील के साथ जन्मे बच्चों में बड़े अनुपात में शिरशोथ होता है, जिसे शंटिंग नाम की एक तरह की शल्य क्रिया से नियंत्रित किया जाता है। इससे मस्तिष्क में तरल का जमाव कम हो जाता है और मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त होने, दौरा पड़ने या अंधेपन का ख़तरा कम हो जाता है। शिरशोथ स्पाइना बिफ़िडा के बिना भी हो सकता है लेकिन दोनों स्थितियां प्रायः एक साथ होती हैं।

स्पाइना बिफ़डा के साथ जुड़ी गौण स्थितियों में लैटेक्स की एलर्जी, कंडराशोथ, मोटापा, त्वचा के विकार, जठरांत्रीय विकार, सीखने में अक्षमता, गतिशीलता प्राप्त करने और बनाये रखने में अक्षमता अवसाद और सामाजिक यौन मुद्दे शामिल हैं।

कुछ मामलों में स्पाइना बिफ़िडा से ग्रस्त बच्चों को जिन्हें शिरशोथ भी हुआ रहता है पढ़ने-लिखने में परेशानी होती है। उन्हें किसी चीज़ पर ध्यान एकाग्र करने, अपनी बात कहने, भाषा सीखने, पढ़ी हुई चीज़ों और गणित को मन में बिठाने दिक्क़त होती है। पढ़ने-लिखने में कठिनाई महसूस करने वाले बच्चों का समय रहते इलाज करके उन्हें स्कूली पढ़ाई के लिए तैयार किया जा सकता है।

हालांकि स्पाइना बिफ़िडा अपेक्षाकृत सामान्य विकृति है लेकिन हाल-फिलहाल तक माइनोमेनिंगोसील से ग्रस्त अधिकतर नवजात शिशु जन्म के कुछ ही देर बाद मर जाते थे। अब चूंकि जन्म के 48 घंटे के भीतर मेरुरज्जु से पानी निकाल कर उनके मस्तिष्क की शिरशोथ से बचाने की शल्य क्रिया की जा सकती है इसलिए माइलोमेनिंगोशील से पीड़ित नवजात शिशुओं के ज़िंदा रहने की संभावना बढ़ गयी है। बहरहाल, ऐसे बच्चों के पूरे शैशवकाल में प्रायः सिलसिलेवार कई आपरेशन करने पड़ते हैं।

आमतौर पर स्पाइना बेफ़िडा नियोजित जन्मजात विकृति है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि आनुवांशिक और पर्यावरणी कारक मिल कर यह और तंत्रिका नाल की दूसरी विकृतियां पैदा कर सकती हैं। स्पाइना बेफ़िडा ग्रस्त 95 प्रतिशत बच्चे ऐसे माता-पिता की संतान होते हैं जिनके परिवार में कोई भी इस विकार से ग्रस्त नहीं होता। हालांकि कुछ परिवारों में स्पाइना बेफ़िडा पीढी-दर-पीढ़ी चलता है लेकिन इसकी आनुवांशिकता का कोई निश्चित क्रम नहीं होता।

डाइबिटीज़ और दौरा पड़ने की बीमारी से ग्रस्त कुछ औरतों (जिनका व्याक्षोभ निवारक दवाइयों से इलाज किया गया होता है) के, स्पाइना बिफ़िडा ग्रस्त बच्चे जनने की आशंका कुछ ज़्यादा रहती है।

किसी भी परिवार में विकार ग्रस्त बच्चे पैदा हो सकते हैं। पारिवारिक जीनों और गर्भावस्था के दौरान औरतें जिन चीज़ों के संपर्क में आती हैं, उनके समेत बहुत-सी चीज़ें हैं जो किसी गर्भ को प्रभावित कर सकती हैं। हालिया अध्ययनों से पता चला है कि फ़ॉलिक एसिड ऐसा कारक है जो किसी बच्चे के तंत्रिका नाल विकार (एनटीडी) से ग्रस्त होने की आशंका कम कर सकता है। गर्भावस्था के पहले और गर्भावस्था के शुरुआती चरण में फ़ॉलिक एसिड का सेवन करने से गर्भास्थ शिशु के स्पाइना बिफ़िडा और दूसरे तंत्रिका नाल विकारों से ग्रस्त होने की आशंका कम रहती है।