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वह अलार्म प्रणाली या चेतावनी जो हमें हमारे शरीर में उत्पन्न या विकसित हो रहे रोगों की सुचना देती है वो है 'दर्द' . एक तरह से हम कह सकते हैं कि दर्द एक जैविक-मनोवैज्ञानिक-सामाजिक विकार है. दर्द कमजोरी लाने वाला भी हो सकता है. इसे परिभाषित कर पाना बहुत मुश्किल है. व्यक्तिपरक होने के नाते अलग अलग व्यक्तियों के लिए इसके मायेने अलग अलग होते हैं. कुछ लोगों के अनुसार ये चिकित्सा सम्बन्धी समस्या नहीं है. वहीँ कुछ लोग इस बात को स्वीकारना कि उन्हें दर्द है, कमज़ोर होने का लक्षण मानते हैं. इसे जांचने या मापने का कोई उपकरण भी नहीं है . दर्द तीव्र या जीर्ण भी हो सकता है. कुछ दर्द जख्म, शल्य-चिकित्सा(सर्जरी) या बीमारी के ख़त्म होने के साथ हीं ख़त्म हो जाते हैं. जबकि जीर्ण या पुराने दर्द कायम रहते हैं. यहाँ तक कि ये व्यक्ति को अक्षम भी बना सकते हैं . कई बार जीर्ण दर्द की तीव्रता की वजह से अपने दोस्तों और परिजनों का सामना करना भी काफी मुश्किल हो जाता है . इसे ख़त्म होने में महीनो या फिर सालों भी लग सकते हैं. दर्द एक व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर सकता है .
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वह अलार्म प्रणाली या चेतावनी जो हमें हमारे शरीर में उत्पन्न या विकसित हो रहे रोगों की सुचना देती है वो है 'दर्द'. एक तरह से हम कह सकते हैं कि दर्द एक जैविक-मनोवैज्ञानिक-सामाजिक विकार है. दर्द कमजोरी लाने वाला भी हो सकता है. इसे परिभाषित कर पाना बहुत मुश्किल है. व्यक्तिपरक होने के नाते अलग अलग व्यक्तियों के लिए इसके मायेने अलग अलग होते हैं. कुछ लोगों के अनुसार ये चिकित्सा सम्बन्धी समस्या नहीं है. वहीँ कुछ लोग इस बात को स्वीकारना कि उन्हें दर्द है, कमज़ोर होने का लक्षण मानते हैं. इसे जांचने या मापने का कोई उपकरण भी नहीं है. दर्द तीव्र या जीर्ण भी हो सकता है. कुछ दर्द जख्म, शल्य-चिकित्सा(सर्जरी या बीमारी के ख़त्म होने के साथ हीं ख़त्म हो जाते हैं. जबकि जीर्ण या पुराने दर्द कायम रहते हैं. यहाँ तक कि ये व्यक्ति को अक्षम भी बना सकते हैं. कई बार जीर्ण दर्द की तीव्रता की वजह से अपने दोस्तों और परिजनों का सामना करना भी काफी मुश्किल हो जाता है. इसे ख़त्म होने में महीनो या फिर सालों भी लग सकते हैं. दर्द एक व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर सकता है.
इसके भयावह मनोवैज्ञानिक प्रभाव निम्न हैं :-
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इसके भयावह मनोवैज्ञानिक प्रभाव निम्न हैं:-
  
#गतिशीलता में कमी-दर्द की वजह से चलना या हिलना डुलना नामुमकिन भी हो सकता है. प्रकृतिस्थ यौन सम्बन्ध बनाने में असमर्थता आ सकती है . इन सबकी वजह से व्यक्ति भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है.
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#गतिशीलता में कमी-दर्द की वजह से चलना या हिलना डुलना नामुमकिन भी हो सकता है. प्रकृतिस्थ यौन सम्बन्ध बनाने में असमर्थता आ सकती है. इन सबकी वजह से व्यक्ति भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है.
 
#अवसाद-गतिहीनता और अवसाद का संयोजन भी हो सकता है. इसकी वजह से चिडचिडापन, चिंता या अधीरता और सबसे कटके बिल्कुल अलग रहने की चाह भी जाग्रत हो सकती है. वैवाहिक जीवन में संघर्ष की उत्पति या वृद्धि हो सकती है.
 
#अवसाद-गतिहीनता और अवसाद का संयोजन भी हो सकता है. इसकी वजह से चिडचिडापन, चिंता या अधीरता और सबसे कटके बिल्कुल अलग रहने की चाह भी जाग्रत हो सकती है. वैवाहिक जीवन में संघर्ष की उत्पति या वृद्धि हो सकती है.
#नींद में गड़बड़ी-नींद प्रभावित होकर अवसाद में योगदान कर सकती है . इसकी वजह से दुर्घटनाओं की संभावना भी बढ़ सकती है.
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#नींद में गड़बड़ी-नींद प्रभावित होकर अवसाद में योगदान कर सकती है. इसकी वजह से दुर्घटनाओं की संभावना भी बढ़ सकती है.
#औषधि-प्रयोग-दवाओं के अतिरिक्त प्रभाव से उनींदापन या तन्द्रा उत्पन्न हो सकती है . इसके अलावा दवाओं पर मनोवैज्ञानिक निर्भरता भी आ सकती है.  
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#औषधि-प्रयोग-दवाओं के अतिरिक्त प्रभाव से उनींदापन या तन्द्रा उत्पन्न हो सकती है. इसके अलावा दवाओं पर मनोवैज्ञानिक निर्भरता भी आ सकती है.  
#चिंता-मांसपेशियों में तनाव और ऐठन कि वजह से दर्द चिंता को बढ़ावा दे सकता है.तनाव, सर दर्द, दिल के दौरे के बाद का दर्द और भी दुसरे तरह के दर्द मांसपेशियों और हड्डियों के विकार उत्पन्न कर सकते हैं.
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#चिंता-मांसपेशियों में तनाव और ऐठन कि वजह से दर्द चिंता को बढ़ावा दे सकता है. तनाव, सर दर्द, दिल के दौरे के बाद का दर्द और भी दुसरे तरह के दर्द मांसपेशियों और हड्डियों के विकार उत्पन्न कर सकते हैं.
  
 
'''प्रबंधन'''
 
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'''विश्राम प्रशिक्षण'''
 
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दीर्घ मांसपेशी विश्रांति (Deep muscle relaxation) और प्रगतिशील मांसपेशी विश्रांति (Progressive muscle relaxation ) के द्वारा दर्द से राहत पाया जा सकता है . इसके लिए आपको चिकित्सक या परामर्शदाता की आवश्यकता होगी . इससे आपकी मांसपेशियों को आराम मिलता है.
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दीर्घ मांसपेशी विश्रांति (Deep muscle relaxation) और प्रगतिशील मांसपेशी विश्रांति (Progressive muscle relaxation ) के द्वारा दर्द से राहत पाया जा सकता है . इसके लिए आपको चिकित्सक या परामर्शदाता की आवश्यकता होगी. इससे आपकी मांसपेशियों को आराम मिलता है.
  
 
'''बायोफीडबैक'''
 
'''बायोफीडबैक'''
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कभी लोग चिकित्सक द्वारा सम्मोहित किये जाते हैं अथवा कई बार उन्हें दर्द के प्रबंधन हेतु स्व-सम्मोहन की विद्या सिखाई जाती है.
 
कभी लोग चिकित्सक द्वारा सम्मोहित किये जाते हैं अथवा कई बार उन्हें दर्द के प्रबंधन हेतु स्व-सम्मोहन की विद्या सिखाई जाती है.
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चिंता और अवसाद से निजात पाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर या समूह में भी चिकित्सक या सलाहकार की सहायता ली जा सकती है.
 
चिंता और अवसाद से निजात पाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर या समूह में भी चिकित्सक या सलाहकार की सहायता ली जा सकती है.
  
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संतुलित भोजन करना पीड़ा प्रतिरोध का सर्वोत्तम तरीका माना जाता है . मुख्य विटामिनो (ए, बी, सी,डी या इ) में से किसी एक की कमी से भी जीर्ण दर्द उत्त्पन्न हो सकता है. विटामिन इ का प्रयोग जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए किया जाता है. कैल्शियम, आयरन तथा मैग्नीशियम की कमी भी दर्द का कारण हो सकती है. कैल्शियम और मैग्नीशियम के पूरक २:१ के अनुपात में लेने से जोड़ों के दर्द तथा सर दर्द में राहत मिलती है. विटामिन बी कि कमी से भी अधीरता, सर दर्द तथा जीर्ण दर्द हो सकते हैं.
 
संतुलित भोजन करना पीड़ा प्रतिरोध का सर्वोत्तम तरीका माना जाता है . मुख्य विटामिनो (ए, बी, सी,डी या इ) में से किसी एक की कमी से भी जीर्ण दर्द उत्त्पन्न हो सकता है. विटामिन इ का प्रयोग जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए किया जाता है. कैल्शियम, आयरन तथा मैग्नीशियम की कमी भी दर्द का कारण हो सकती है. कैल्शियम और मैग्नीशियम के पूरक २:१ के अनुपात में लेने से जोड़ों के दर्द तथा सर दर्द में राहत मिलती है. विटामिन बी कि कमी से भी अधीरता, सर दर्द तथा जीर्ण दर्द हो सकते हैं.
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'''Translated in Hindi by Alokita Gupta'''

Latest revision as of 21:44, 4 March 2012

Management Tips

Pain management

Paincycle.png

वह अलार्म प्रणाली या चेतावनी जो हमें हमारे शरीर में उत्पन्न या विकसित हो रहे रोगों की सुचना देती है वो है 'दर्द'. एक तरह से हम कह सकते हैं कि दर्द एक जैविक-मनोवैज्ञानिक-सामाजिक विकार है. दर्द कमजोरी लाने वाला भी हो सकता है. इसे परिभाषित कर पाना बहुत मुश्किल है. व्यक्तिपरक होने के नाते अलग अलग व्यक्तियों के लिए इसके मायेने अलग अलग होते हैं. कुछ लोगों के अनुसार ये चिकित्सा सम्बन्धी समस्या नहीं है. वहीँ कुछ लोग इस बात को स्वीकारना कि उन्हें दर्द है, कमज़ोर होने का लक्षण मानते हैं. इसे जांचने या मापने का कोई उपकरण भी नहीं है. दर्द तीव्र या जीर्ण भी हो सकता है. कुछ दर्द जख्म, शल्य-चिकित्सा(सर्जरी या बीमारी के ख़त्म होने के साथ हीं ख़त्म हो जाते हैं. जबकि जीर्ण या पुराने दर्द कायम रहते हैं. यहाँ तक कि ये व्यक्ति को अक्षम भी बना सकते हैं. कई बार जीर्ण दर्द की तीव्रता की वजह से अपने दोस्तों और परिजनों का सामना करना भी काफी मुश्किल हो जाता है. इसे ख़त्म होने में महीनो या फिर सालों भी लग सकते हैं. दर्द एक व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर सकता है. इसके भयावह मनोवैज्ञानिक प्रभाव निम्न हैं:-

  1. गतिशीलता में कमी-दर्द की वजह से चलना या हिलना डुलना नामुमकिन भी हो सकता है. प्रकृतिस्थ यौन सम्बन्ध बनाने में असमर्थता आ सकती है. इन सबकी वजह से व्यक्ति भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है.
  2. अवसाद-गतिहीनता और अवसाद का संयोजन भी हो सकता है. इसकी वजह से चिडचिडापन, चिंता या अधीरता और सबसे कटके बिल्कुल अलग रहने की चाह भी जाग्रत हो सकती है. वैवाहिक जीवन में संघर्ष की उत्पति या वृद्धि हो सकती है.
  3. नींद में गड़बड़ी-नींद प्रभावित होकर अवसाद में योगदान कर सकती है. इसकी वजह से दुर्घटनाओं की संभावना भी बढ़ सकती है.
  4. औषधि-प्रयोग-दवाओं के अतिरिक्त प्रभाव से उनींदापन या तन्द्रा उत्पन्न हो सकती है. इसके अलावा दवाओं पर मनोवैज्ञानिक निर्भरता भी आ सकती है.
  5. चिंता-मांसपेशियों में तनाव और ऐठन कि वजह से दर्द चिंता को बढ़ावा दे सकता है. तनाव, सर दर्द, दिल के दौरे के बाद का दर्द और भी दुसरे तरह के दर्द मांसपेशियों और हड्डियों के विकार उत्पन्न कर सकते हैं.

प्रबंधन

पीड़ा प्रबंधन के लिए निम्नलिखित तकनीक को अपनाया जा सकता है:

विश्राम प्रशिक्षण

दीर्घ मांसपेशी विश्रांति (Deep muscle relaxation) और प्रगतिशील मांसपेशी विश्रांति (Progressive muscle relaxation ) के द्वारा दर्द से राहत पाया जा सकता है . इसके लिए आपको चिकित्सक या परामर्शदाता की आवश्यकता होगी. इससे आपकी मांसपेशियों को आराम मिलता है.

बायोफीडबैक

अपनी शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करना सिखने के लिए ख़ास तरह कि मशीन का प्रयोग किया जाता है. एक बार तकनीक में महारत हासिल कर लेने के बाद बगैर मशीन के भी इसे किया जा सकता है.

दृश्य कल्पना और विकर्षण

इसके तहत आपको मनमोहक दृश्यों की कल्पना करते हुए ध्यान केन्द्रित करना या फिर मानसिक रूप से कुछ सकारात्मक शब्द या वाक्यांशों को दोहराते हुए दर्द को कम करना सिखाया जाता है. नकारात्मक विचारों को हटाया जा सकता है. इससे मस्तिष्क के सुखद रसायनों जैसे कि सेरोटोनिन को जागृत तथा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभाव को बढ़ाते हुए चिंताओं को घटाया जा सकता है. मन, मानसिक दृश्यों के सहारे शरीर की उर्जा को सही दिशा में अग्रेषित करता है. उदाहरण के तौर पर अगर कोई व्यक्ति शरीर को बेधने सा दर्द महसूस करता है तो वह कल्पना करना चाहेगा कि उस जगह से छुरी निकाली जा रही है और फलस्वरूप उसे राहत की अनुभूति हो रही है. इस तकनीक का इस्तेमाल सफलता पूर्वक सर के दर्द, साइनस, गठिया और कैंसर पर किया जा चुका है. विकर्षण तकनीक नकारात्मक और दर्द भरी छवि से ध्यान हटा कर सकारात्मक विचारों पर ध्यान केन्द्रित करने में हमारे सहायक साबित होते हैं. इसके अंतर्गत कुछ गतिविधियाँ जैसे कि टेलिविज़न या पसंदीदा फिल्म देखना, कोई पुस्तक पढना, कोई गीत सुनना या फिर किसी मित्र से बात करना शामिल की जा सकती है.

सम्मोहन

कभी लोग चिकित्सक द्वारा सम्मोहित किये जाते हैं अथवा कई बार उन्हें दर्द के प्रबंधन हेतु स्व-सम्मोहन की विद्या सिखाई जाती है.

चिंता और अवसाद से निजात पाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर या समूह में भी चिकित्सक या सलाहकार की सहायता ली जा सकती है.

व्यायाम

व्यायाम पीड़ा प्रबंधन का एक उत्कृष्ट माध्यम है जिससे चोट को ठीक किया जा सकता है, हड्डियों, मांशपेशियों आदि को मजबूत किया जा सकता है, जोड़ों के स्वास्थ को बनाये रखा जा सकता है, लचीलापन बढाया जा सकता है और व्यायाम के ऐसे हीं कई और फायेदे हैं.

पोषण

संतुलित भोजन करना पीड़ा प्रतिरोध का सर्वोत्तम तरीका माना जाता है . मुख्य विटामिनो (ए, बी, सी,डी या इ) में से किसी एक की कमी से भी जीर्ण दर्द उत्त्पन्न हो सकता है. विटामिन इ का प्रयोग जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए किया जाता है. कैल्शियम, आयरन तथा मैग्नीशियम की कमी भी दर्द का कारण हो सकती है. कैल्शियम और मैग्नीशियम के पूरक २:१ के अनुपात में लेने से जोड़ों के दर्द तथा सर दर्द में राहत मिलती है. विटामिन बी कि कमी से भी अधीरता, सर दर्द तथा जीर्ण दर्द हो सकते हैं.

Translated in Hindi by Alokita Gupta