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ऑटिज़्म (Autism) या आत्मविमोह/ स्वलीनता, एक मानसिक रोग या मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था(प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है. इन  बच्चो का विकास अन्य बच्चो से असामान्य होता है. इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना. ऑटिज्मग्रस्त व्यक्ति संवेदनों के प्रति असामान्य व्यवहार दर्शाते हैं. इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में दिखाई देता है, जैसे व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना. ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है। यह अमीर या ग़रीब किसी भी तबके में पाई जा सकती है.
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ऑटिज़्म (Autism) या आत्मविमोह/ स्वलीनता, मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था(प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है. इन  बच्चो का विकास अन्य बच्चो से असामान्य होता है. इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना. ऑटिज्मग्रस्त व्यक्ति संवेदनों के प्रति असामान्य व्यवहार दर्शाते हैं. इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में दिखाई देता है, जैसे व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना. ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है। यह अमीर या ग़रीब किसी भी तबके में पाई जा सकती है.
  
 
आटिज्म को हिन्दी में स्वलीनता, स्वपरायणता अथवा स्वत: प्रेम कहते हैं. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,'आटिज्म' यानि स्वलीनता से ग्रसित व्यक्ति बाहरी दुनिया से बेखबर अपने आप में ही लीन रहता है. सुनने के लिए कान स्वस्थ है, देखने के लिए ऑंखें ठीक हैं फिर भी वह अपने आस पास के वातावरण से अनजान रहता ह. ऑटिज़्म का एक मज़बूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि ऑटिज़्म की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है.
 
आटिज्म को हिन्दी में स्वलीनता, स्वपरायणता अथवा स्वत: प्रेम कहते हैं. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,'आटिज्म' यानि स्वलीनता से ग्रसित व्यक्ति बाहरी दुनिया से बेखबर अपने आप में ही लीन रहता है. सुनने के लिए कान स्वस्थ है, देखने के लिए ऑंखें ठीक हैं फिर भी वह अपने आस पास के वातावरण से अनजान रहता ह. ऑटिज़्म का एक मज़बूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि ऑटिज़्म की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है.
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विश्व में आटिज्म प्रभावितों की संख्या एड्स, मधुमेह और कैंसर से पीड़ित रोगियों की मिली जुली संख्या से भी अधिक होने की सम्भावना है. यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है. विश्व भर में प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत मरीज़ पुरुष और मात्र 20 प्रतिशत महिलाएँ हैं। इसका मतलब आटिज्म की समस्या लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में 4 से 5 गुना ज़्यादा है. यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख (तक़रीबन 1.5 मिलियन) है.
 
विश्व में आटिज्म प्रभावितों की संख्या एड्स, मधुमेह और कैंसर से पीड़ित रोगियों की मिली जुली संख्या से भी अधिक होने की सम्भावना है. यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है. विश्व भर में प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत मरीज़ पुरुष और मात्र 20 प्रतिशत महिलाएँ हैं। इसका मतलब आटिज्म की समस्या लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में 4 से 5 गुना ज़्यादा है. यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख (तक़रीबन 1.5 मिलियन) है.
  
'''ऑटिज्म के लक्षण'''
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=='''ऑटिज्म के लक्षण'''==
  
 
ऑटिज्म को केवल एक लक्षण के आधार पर पहचाना नहीं जा सकता, बल्कि लक्षणों के पैटर्न के आधार पर ही आटिज्म की पहचान की जा सकती है. सामाजिक कुशलता व संप्रेषण का अभाव, किसी कार्य को बार-बार दोहराने की प्रवृत्ति तथा सीमित रुझान इसके प्रमुख लक्षण हैं। एक आम आदमी के लिए आटिज्म की पहचान करना काफ़ी मुश्किल है। इसके मूल में दो कारण हो सकते हैं। आटिस्टिक व्यक्ति की शारीरिक संरचना में प्रत्यक्ष तौर पर कोई कभी नहीं होती। बच्चे की तीन वर्ष की उम्र में ही आटिज्म के लक्षण दिखाई देते हैं, इससे पहले नहीं। गौर करने वाली बात यह है कि ऑटिज्म से पीड़ित दो बच्चों के लक्षण समान नहीं होते हैं। जहाँ कुछ बच्चों में यह बीमारी सामान्य रूप में होती है, तो कुछ में इसका प्रभाव ज़्यादा देखने को मिलता है.
 
ऑटिज्म को केवल एक लक्षण के आधार पर पहचाना नहीं जा सकता, बल्कि लक्षणों के पैटर्न के आधार पर ही आटिज्म की पहचान की जा सकती है. सामाजिक कुशलता व संप्रेषण का अभाव, किसी कार्य को बार-बार दोहराने की प्रवृत्ति तथा सीमित रुझान इसके प्रमुख लक्षण हैं। एक आम आदमी के लिए आटिज्म की पहचान करना काफ़ी मुश्किल है। इसके मूल में दो कारण हो सकते हैं। आटिस्टिक व्यक्ति की शारीरिक संरचना में प्रत्यक्ष तौर पर कोई कभी नहीं होती। बच्चे की तीन वर्ष की उम्र में ही आटिज्म के लक्षण दिखाई देते हैं, इससे पहले नहीं। गौर करने वाली बात यह है कि ऑटिज्म से पीड़ित दो बच्चों के लक्षण समान नहीं होते हैं। जहाँ कुछ बच्चों में यह बीमारी सामान्य रूप में होती है, तो कुछ में इसका प्रभाव ज़्यादा देखने को मिलता है.
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ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अलग तरीके के खेल खेलते हैं, जैसे कई कारों को क्रमबद्ध करने का खेल। ये बच्चे खिलौने को आम बच्चों की तुलना में अधिक घुमाते हैं. ऐसे बच्चे समूह में रहना पसंद नहीं करते, उनकी अपनी अलग ही दुनिया होती है. वह बिना किसी बात के रोने और चिल्लाने लगते हैं. इस तरह के बच्चे अपने गुस्से, हताशा आदि का इजहार बोल कर नहीं कर पाते। कार्यात्मक संभाषण के लिए संयुक्त ध्यान आवश्यक होता है, और इस संयुक्त ध्यान में कमी, इन शिशुओं को अन्यों से अलग करता है.
 
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अलग तरीके के खेल खेलते हैं, जैसे कई कारों को क्रमबद्ध करने का खेल। ये बच्चे खिलौने को आम बच्चों की तुलना में अधिक घुमाते हैं. ऐसे बच्चे समूह में रहना पसंद नहीं करते, उनकी अपनी अलग ही दुनिया होती है. वह बिना किसी बात के रोने और चिल्लाने लगते हैं. इस तरह के बच्चे अपने गुस्से, हताशा आदि का इजहार बोल कर नहीं कर पाते। कार्यात्मक संभाषण के लिए संयुक्त ध्यान आवश्यक होता है, और इस संयुक्त ध्यान में कमी, इन शिशुओं को अन्यों से अलग करता है.
  
'''बाल्यावस्था में ऑटिज्म को कैसे पहचाने'''
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=='''बाल्यावस्था में ऑटिज्म को कैसे पहचाने'''==
  
 
बाल्यावस्था में सामान्य बच्चो एवं ऑटिस्टिक बच्चो में कुछ प्रमुख अन्तर होते है जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे:-
 
बाल्यावस्था में सामान्य बच्चो एवं ऑटिस्टिक बच्चो में कुछ प्रमुख अन्तर होते है जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे:-
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*इन बच्चो में कुछ विशेष बातें होती है जैसे एक इन्द्री का अतितीव्र होना जैसे श्रवण शक्ति
 
*इन बच्चो में कुछ विशेष बातें होती है जैसे एक इन्द्री का अतितीव्र होना जैसे श्रवण शक्ति
  
'''ऑटिज्म का इलाज़'''
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=='''ऑटिज्म का इलाज़'''==
  
 
ऑटिज्म की शीघ्र की गई पहचान, मनोरोग विशेषज्ञ से तुंरत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज़ है. अगर माता-पिता इसके शुरुआती लक्षणों के आधार पर इसकी पहचान करें सके. तो बच्चे को किसी मनोचिकित्सक को दिखाएं। जितनी जल्दी आप बच्चे का इलाज शुरू करवा देंगे, उतनी ज़्यादा इस बात की संभावना है कि बच्चा स्वस्थ हो सके. ऑटिज्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है. इसके बारे में जानकारी जुटाए तथा मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से संपर्क करे। ऑटिज्म एक प्रकार की विकास सम्बन्धी समस्या है. शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक, और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं. ऑटिज़्म एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है. अगर मानसिक मंदता अधिक न हो तो ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सिख पाता है. कभी-कभी बच्चो में ऐसी काबिलियत भी देखी जाती है जो सामान्य व्यक्तियों के समझ और पहुँच से दूर होता है.
 
ऑटिज्म की शीघ्र की गई पहचान, मनोरोग विशेषज्ञ से तुंरत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज़ है. अगर माता-पिता इसके शुरुआती लक्षणों के आधार पर इसकी पहचान करें सके. तो बच्चे को किसी मनोचिकित्सक को दिखाएं। जितनी जल्दी आप बच्चे का इलाज शुरू करवा देंगे, उतनी ज़्यादा इस बात की संभावना है कि बच्चा स्वस्थ हो सके. ऑटिज्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है. इसके बारे में जानकारी जुटाए तथा मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से संपर्क करे। ऑटिज्म एक प्रकार की विकास सम्बन्धी समस्या है. शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक, और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं. ऑटिज़्म एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है. अगर मानसिक मंदता अधिक न हो तो ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सिख पाता है. कभी-कभी बच्चो में ऐसी काबिलियत भी देखी जाती है जो सामान्य व्यक्तियों के समझ और पहुँच से दूर होता है.
  
'''विभिन्न थेरैपी'''
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=='''विभिन्न थेरैपी'''==
  
 
आटिज्म से प्रभावित बच्चे/ व्यक्ति के जीवन में गुणात्मक सुधार लाना तथा उसे आत्म निर्भर बनाना ही इलाज का मुख्य ध्येय होना चाहिए. इसके लिए शीघ्र हस्तक्षेप के ज़रिये समस्या की शीघ्र अतिशीघ्र पहचान कर उसका निदान करना होगा. आटिज्म से प्रभावित बच्चे के जीवन को काफ़ी हद तक सुधार कर उसे समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है. विभिन्न थेरैपी, एक्सपर्ट का मानना है कि आटिज्म से प्रभावित बच्चों को थेरैपी देना केवल थेरैपिस्ट का ही दायित्व नहीं है, अपितु माता पिता की सक्रिय भागीदारी ही ऐसे बच्चों के पुनर्वास में सहायक होती है.
 
आटिज्म से प्रभावित बच्चे/ व्यक्ति के जीवन में गुणात्मक सुधार लाना तथा उसे आत्म निर्भर बनाना ही इलाज का मुख्य ध्येय होना चाहिए. इसके लिए शीघ्र हस्तक्षेप के ज़रिये समस्या की शीघ्र अतिशीघ्र पहचान कर उसका निदान करना होगा. आटिज्म से प्रभावित बच्चे के जीवन को काफ़ी हद तक सुधार कर उसे समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है. विभिन्न थेरैपी, एक्सपर्ट का मानना है कि आटिज्म से प्रभावित बच्चों को थेरैपी देना केवल थेरैपिस्ट का ही दायित्व नहीं है, अपितु माता पिता की सक्रिय भागीदारी ही ऐसे बच्चों के पुनर्वास में सहायक होती है.
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आटिज्म को इंडिविजुअल विथ डिस्एबिलिटी एजुकेशन एक्ट(आई.डी.ई.ए.) के अंतर्गत लिया गया है. इस अधिनियम में आटिज्म प्रभावितों की शीघ्र पहचान, परीक्षण तथा स्पीच थेरैपी की सेवाएं सम्मिलित हैं. आई.डी.ई.ए. अधिनियम 21 वर्ष तक के आटिज्म प्रभावितों के शिक्षा हेतु मार्गदर्शी की भूमिका का निर्वहन करता है व साथ ही उनका हित संरक्षण भी. दिल्ली स्थित रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (आर.सी.आई.) ऑटिज्म सहित अन्य विकलांगताओं से ग्रसित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं संरक्षण कार्य का दायित्व निभाती है.
 
आटिज्म को इंडिविजुअल विथ डिस्एबिलिटी एजुकेशन एक्ट(आई.डी.ई.ए.) के अंतर्गत लिया गया है. इस अधिनियम में आटिज्म प्रभावितों की शीघ्र पहचान, परीक्षण तथा स्पीच थेरैपी की सेवाएं सम्मिलित हैं. आई.डी.ई.ए. अधिनियम 21 वर्ष तक के आटिज्म प्रभावितों के शिक्षा हेतु मार्गदर्शी की भूमिका का निर्वहन करता है व साथ ही उनका हित संरक्षण भी. दिल्ली स्थित रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (आर.सी.आई.) ऑटिज्म सहित अन्य विकलांगताओं से ग्रसित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं संरक्षण कार्य का दायित्व निभाती है.
  
'''ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को मदद'''
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=='''ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को मदद'''==
  
 
ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को निम्नलिखित तरीको से मदद की जा सकती है:
 
ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को निम्नलिखित तरीको से मदद की जा सकती है:

Latest revision as of 23:00, 1 April 2015

WorldAutismAwarenessDay.jpg

ऑटिज़्म (Autism) या आत्मविमोह/ स्वलीनता, मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था(प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है. इन बच्चो का विकास अन्य बच्चो से असामान्य होता है. इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना. ऑटिज्मग्रस्त व्यक्ति संवेदनों के प्रति असामान्य व्यवहार दर्शाते हैं. इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में दिखाई देता है, जैसे व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना. ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है। यह अमीर या ग़रीब किसी भी तबके में पाई जा सकती है.

आटिज्म को हिन्दी में स्वलीनता, स्वपरायणता अथवा स्वत: प्रेम कहते हैं. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,'आटिज्म' यानि स्वलीनता से ग्रसित व्यक्ति बाहरी दुनिया से बेखबर अपने आप में ही लीन रहता है. सुनने के लिए कान स्वस्थ है, देखने के लिए ऑंखें ठीक हैं फिर भी वह अपने आस पास के वातावरण से अनजान रहता ह. ऑटिज़्म का एक मज़बूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि ऑटिज़्म की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है.

विश्व में आटिज्म प्रभावितों की संख्या एड्स, मधुमेह और कैंसर से पीड़ित रोगियों की मिली जुली संख्या से भी अधिक होने की सम्भावना है. यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है. विश्व भर में प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत मरीज़ पुरुष और मात्र 20 प्रतिशत महिलाएँ हैं। इसका मतलब आटिज्म की समस्या लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में 4 से 5 गुना ज़्यादा है. यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख (तक़रीबन 1.5 मिलियन) है.

ऑटिज्म के लक्षण

ऑटिज्म को केवल एक लक्षण के आधार पर पहचाना नहीं जा सकता, बल्कि लक्षणों के पैटर्न के आधार पर ही आटिज्म की पहचान की जा सकती है. सामाजिक कुशलता व संप्रेषण का अभाव, किसी कार्य को बार-बार दोहराने की प्रवृत्ति तथा सीमित रुझान इसके प्रमुख लक्षण हैं। एक आम आदमी के लिए आटिज्म की पहचान करना काफ़ी मुश्किल है। इसके मूल में दो कारण हो सकते हैं। आटिस्टिक व्यक्ति की शारीरिक संरचना में प्रत्यक्ष तौर पर कोई कभी नहीं होती। बच्चे की तीन वर्ष की उम्र में ही आटिज्म के लक्षण दिखाई देते हैं, इससे पहले नहीं। गौर करने वाली बात यह है कि ऑटिज्म से पीड़ित दो बच्चों के लक्षण समान नहीं होते हैं। जहाँ कुछ बच्चों में यह बीमारी सामान्य रूप में होती है, तो कुछ में इसका प्रभाव ज़्यादा देखने को मिलता है.

ऑटिज़्म मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करता है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता। आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को भाँप लेते हैं. ऑटिज़्म को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है. मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:

सामाजिक संपर्क में असमर्थता ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति परस्पर संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं तथा सामाजिक व्यवहार में असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने में भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते. सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरू हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं. ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते हैं, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज़्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं. ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं, और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं. तीन से पाँच साल के बच्चे बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं. वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते हैं. आम धारणा के विपरीत, आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते. दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है. इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है।

बातचीत करने में असमर्थता

आटिज्म प्रभावित बच्चों की सबसे बड़ी समस्या भाषागत होती है. ऐसे बच्चों को बोलने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. लगभग 50% बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है. एक तिहाई से लेकर आधे ऑटिस्टिक व्यक्तियों में अपने दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लायक़ भाषा बोध तथा बोलने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती. संचार में कमियाँ जीवन के पहले वर्ष में ही दृष्टिगोचर हो जाती हैं जिनमे शामिल है, देर से बोलना, असामान्य भाव, मंद प्रतिक्रिया, और अपने पालक के साथ हुये वार्तालाप में सामंजस्य का नितांत आभाव. दूसरे और तीसरे साल में, ऑटिस्टिक बच्चे कम बोलते हैं, साथ ही उनका शब्द संचय और शब्द संयोजन भी विस्तृत नहीं होता. उनके भाव अक्सर उनके बोले शब्दों से मेल नहीं खाते. आटिस्टिक बच्चों में अनुरोध करने या अनुभवों को बाँटने की संभावना कम होती है, और उनमें बस दूसरों की बातें को दोहराने की संभावना अधिक होती है.

सीमित शौक़ और दोहराव युक्त व्यवहार

वे एक ही क्रिया, व्यवहार को दोहराते हैं, जैसे- हाथ हिलाना, शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाज़ें करना आदि। जिसे स्टीरेओटाईपी कहते है यह एक निरर्थक प्रतिक्रिया है. प्रतिबंधित व्यवहार ध्यान, शौक़ या गतिविधि को सीमित रखने से संबधित है, जैसे एक ही टीवी कार्यक्रम को बार बार देखना. बाध्यकारी व्यवहार का उद्देश्य नियमों का पालन करना होता है, जैसे कि वस्तुओं को एक निश्चित तरह की व्यवस्था में रखना.अनुष्ठानिक व्यवहार के प्रदर्शन में शामिल हैं दैनिक गतिविधियों को हर बार एक ही तरह से करना, जैसे- एक सा खाना, एक सी पोशाक आदि। यह समानता के साथ निकटता से जुड़ा है, और एक स्वतंत्र सत्यापन दोनो के संयोजन की सलाह देता है. समानता का अर्थ परिवर्तन का प्रतिरोध है, उदाहरण के लिए, फर्नीचर के स्थानांतरण से इंकार.आत्मघात(स्वयं को चोट पहुँचाना) से अभिप्राय है कि कोई भी ऐसी क्रिया जिससे व्यक्ति खुद को आहत कर सकता हो, जैसे-खुद को काट लेना। डोमिनिक एट अल के अनुसार लगभग ASD से प्रभावित 30% बच्चे स्वयं को चोट पहँचा सकते है. वे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया दर्शाते हैं. उदाहरण के तौर पर वह प्रकाश में अपनी आंखों को बंद कर लेते हैं, कुछ विशेष ध्वनियां होने पर वह अपने कानों को बंद कर लेते हैं.

खेलने का उनका अपना असामान्य तरीका

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अलग तरीके के खेल खेलते हैं, जैसे कई कारों को क्रमबद्ध करने का खेल। ये बच्चे खिलौने को आम बच्चों की तुलना में अधिक घुमाते हैं. ऐसे बच्चे समूह में रहना पसंद नहीं करते, उनकी अपनी अलग ही दुनिया होती है. वह बिना किसी बात के रोने और चिल्लाने लगते हैं. इस तरह के बच्चे अपने गुस्से, हताशा आदि का इजहार बोल कर नहीं कर पाते। कार्यात्मक संभाषण के लिए संयुक्त ध्यान आवश्यक होता है, और इस संयुक्त ध्यान में कमी, इन शिशुओं को अन्यों से अलग करता है.

बाल्यावस्था में ऑटिज्म को कैसे पहचाने

बाल्यावस्था में सामान्य बच्चो एवं ऑटिस्टिक बच्चो में कुछ प्रमुख अन्तर होते है जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे:-

  • सामान्य बच्चें माँ का चेहरा देखते है और उसके हाव-भाव समझने की कोशिश करते है परन्तु ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे किसी से नज़र मिलाने से कतराते हैं
  • सामान्य बच्चे आवाज़े सुनने के बाद खुश हो जाते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे आवाज़ों पर ध्यान नहीं देते
  • सामान्य बच्चे रे-धीरे भाषा ज्ञान में वृद्धि करते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे बोलने के कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देते है तथा अजीब आवाज़ें निकलतें है.
  • सामान्य बच्चे माँ के दूर होने पर या अनजाने लोगो से मिलने पर परेशान हो जाते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे किसी के आने-जाने पर परेशान नहीं होते
  • ऑटिस्टिक बच्चे तकलीफ के प्रति कोई क्रिया नहीं करते और बचने की भी कोशिश नहीं करते
  • सामान्य बच्चे क़रीबी लोगो को पहचानते है तथा उनके मिलने पर मुस्कुराते है लेकिन ऑटिस्टिक बच्चे कोशिश करने पर भी किसी से बात नहीं करते वो अपने ही दुनिया में खोये रहते हैं
  • ऑटिस्टिक बच्चे एक ही वस्तु या कार्य में मग्न रहते है तथा अजीब क्रियाओं को बार-बार दुहराते है जैसे: आगे-पीछे हिलना, हाथ को हिलाते रहना
  • ऑटिस्टिक बच्चे अन्य बच्चों की तरह काल्पनिक खेल नहीं खेल पाते वह खेलने के वजाय खिलौनों को सूंघते या चाटते हैं
  • ऑटिस्टिक बच्चे बदलाव को बर्दास्त नहीं कर पाते एवं अपने क्रियाकलापों को नियमानुसार ही करना चाहते हैं. 10.ऑटिस्टिक बच्चे बहुत चंचल या बहुत सुस्त होते हैं
  • इन बच्चो में कुछ विशेष बातें होती है जैसे एक इन्द्री का अतितीव्र होना जैसे श्रवण शक्ति

ऑटिज्म का इलाज़

ऑटिज्म की शीघ्र की गई पहचान, मनोरोग विशेषज्ञ से तुंरत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज़ है. अगर माता-पिता इसके शुरुआती लक्षणों के आधार पर इसकी पहचान करें सके. तो बच्चे को किसी मनोचिकित्सक को दिखाएं। जितनी जल्दी आप बच्चे का इलाज शुरू करवा देंगे, उतनी ज़्यादा इस बात की संभावना है कि बच्चा स्वस्थ हो सके. ऑटिज्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है. इसके बारे में जानकारी जुटाए तथा मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से संपर्क करे। ऑटिज्म एक प्रकार की विकास सम्बन्धी समस्या है. शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक, और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं. ऑटिज़्म एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है. अगर मानसिक मंदता अधिक न हो तो ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सिख पाता है. कभी-कभी बच्चो में ऐसी काबिलियत भी देखी जाती है जो सामान्य व्यक्तियों के समझ और पहुँच से दूर होता है.

विभिन्न थेरैपी

आटिज्म से प्रभावित बच्चे/ व्यक्ति के जीवन में गुणात्मक सुधार लाना तथा उसे आत्म निर्भर बनाना ही इलाज का मुख्य ध्येय होना चाहिए. इसके लिए शीघ्र हस्तक्षेप के ज़रिये समस्या की शीघ्र अतिशीघ्र पहचान कर उसका निदान करना होगा. आटिज्म से प्रभावित बच्चे के जीवन को काफ़ी हद तक सुधार कर उसे समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है. विभिन्न थेरैपी, एक्सपर्ट का मानना है कि आटिज्म से प्रभावित बच्चों को थेरैपी देना केवल थेरैपिस्ट का ही दायित्व नहीं है, अपितु माता पिता की सक्रिय भागीदारी ही ऐसे बच्चों के पुनर्वास में सहायक होती है.

नेशनल रिहेब्लिटेशन काउंसिल के अनुसार स्पीच थैरेपी तभी लाभकारी होगी जब बचपन से ही स्पीच थैरेपी का प्रारंभ, उसकी स्वाभाविक संप्रेषण कला को बढ़ावा मिले, बच्चे द्वारा संप्रेषण कला सीख लेने के पश्चात सीखे गये ज्ञान का सामान्यीकरण हो। तत्पश्चात थिरैपिस्ट की मदद से योजनाबध्द तरीके से वांछित परिणाम प्राप्त होने तक थेरैपी जारी रखनी चाहिए। थेरैपी देते वक़्त कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यावश्यक है. थेरैपी दौरान जब बच्चा आशा के अनुरूप कार्य कर लेता है तो उसका उत्साहवर्धन करने के उद्देश्य से तुरन्त उसे कोई टोकन, टॉफी या शाबासी अवश्य देना चाहिए. दूसरी बात बच्चे को स्पीच थेरैपी देते वक़्त टीचर एवं बच्चे का अनुपात 1:1 होना चाहिए.क्योंकि कई बार देखने में आता है कि आटिज्म से प्रभावित बच्चे को अन्य समस्याओं जैसे बधिरता अंधत्व, सेरेब्रल पालसी (प्रमस्तिष्क पक्षापात) या फिर मानसिक मंदता जैसे एक या एक से अधिक समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। ऐसे में आटिज्म के साथ जुड़ी अन्य समस्याओं को भी ध्यान में रखकर स्पीच थेरैपी दिया जाना चाहिए। सीखने की यह प्रक्रिया दीर्घ कालिक है। संयम, समर्पण व सतत प्रयास पर ही सफलता का दारोमदार टिका है. ऐसे बच्चे नृत्य, कला, संगीत अथवा तकनीक के क्षेत्र में काफ़ी कुशल भी हो सकते हैं.

आटिज्म को इंडिविजुअल विथ डिस्एबिलिटी एजुकेशन एक्ट(आई.डी.ई.ए.) के अंतर्गत लिया गया है. इस अधिनियम में आटिज्म प्रभावितों की शीघ्र पहचान, परीक्षण तथा स्पीच थेरैपी की सेवाएं सम्मिलित हैं. आई.डी.ई.ए. अधिनियम 21 वर्ष तक के आटिज्म प्रभावितों के शिक्षा हेतु मार्गदर्शी की भूमिका का निर्वहन करता है व साथ ही उनका हित संरक्षण भी. दिल्ली स्थित रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (आर.सी.आई.) ऑटिज्म सहित अन्य विकलांगताओं से ग्रसित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं संरक्षण कार्य का दायित्व निभाती है.

ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को मदद

ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को निम्नलिखित तरीको से मदद की जा सकती है:

  • शरीर पर दवाव बनाने के लिए बड़ी गेंद का इस्तेमाल करना।
  • सुनने की अतिशक्ति कम करने के लिए कान पर थोडी देर के लिए हलकी मालिश करना।
  • खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करे।
  • खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाए
  • बारी-बारी से खेलने की आदत डाल
  • धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जाए
  • छोटे-छोटे वाक्यों में बात करे
  • साधारण वाक्यों का प्रयोग करे
  • रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को जोड़कर बोलना सिखाए
  • पहले समझना फिर बोलना सिखाए
  • यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दे और बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करे
  • बच्चो को अपनी जरूरतों को बोलने का मौक़ा दे
  • यदि बच्चा बिल्कुल बोल नहीं पाए तो उसे तस्वीर की तरफ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाये
  • बच्चो को घर के अलावा अन्य लोगो से नियमित रूप से मिलने का मौक़ा दे
  • बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले जाए
  • अन्य लोगो को बच्चो से बात करने के लिए प्रेरित करे
  • यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे किसी दुसरे काम में व्यस्त रखे
  • ग़लत व्यवहार दोहराने पर बच्चो से कुछ ऐसा करवाए जो उसे पसंद ना हो
  • यदि बच्चा कुछ देर ग़लत व्यवहार न करे तो उसे तुंरत प्रोत्साहित करे
  • प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्यान खींचने वाली चीजो का इस्तेमाल करे
  • बच्चो को अपनी शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए उसे शारिरीक खेल के लिए प्रोत्साहित करे
  • अगर परेशानी ज़्यादा हो तो मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवाओ को प्रयोग करे