"सुमन" माता पिता नाम तो रखते है बेहद सोच समझ कर, पर ज़िंदगी उनके मायने अक्सर बदल देती है...किसी को क्या पता सुमन कहाँ चढ़ाया जायेगा या कहाँ रौंदा जायेगा. बीता कल आँखों के सामने जब भी आता उसे एहसास करता था इस संसार और इंसान दोनों की विविधता का विचित्रता का...दीदी एक चॉक्लेट दे दो एक छोटी सी लड़की की आवाज से सुमन की तन्द्रा टूटी..मुस्कुरा कर उसने उसे एक चॉक्लेट पकड़ाई…फिर से सुमन अपने जनरल स्टोर की चेयर पर बैठकर खो गयी यादों के भंवर में...वो भी तब केवल ९ साल की थी जब उसे चॉकलेट दे दे कर फुसलाने वाली उसकी बुआ ने पढ़ाई के नाम पर उसे मुम्बई ले जा कर बेच दिया था राधा बायीं के कोठे पर. पिता थे नहीं, घर गरीबी से भरा था इसलिए माँ ने बुआ की बात सुन कर उसे मुम्बई भेज दिया.
१० वर्षो तक राधा बाई ने उसके शरीर का इस्तेमाल कर खूब पैसा कमाया...वैसे उसने कभी सुमन के रहने खाने और पहनने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी.पर उसे कभी आज़ाद नहीं होने दिया...सुमन सब कुछ करती रही एक मशीन की तरह जो भी पैसा कमाती वो माँ की दवाइयों और भाई की पढ़ाई में खर्च हो जाता ...१० साल तक मुम्बई के होटलों में घूमते घूमते सुमन की ज़िन्दगी बस एक चक्रव्यूह में उलझ कर रह गयी थी...माँ के घुटने काम नहीं करते थे वो बिस्तर पर पड़े रहती थी छोटा भाई पढ़ रहा था. किसी तरह सुमन चला रही थी घर पर वो उसकी मजबूरी होते हुए. भी उसे घिन आती थी इस दलदल और इस समाज से सुमन ने कई बार कोशिश की भागने की पर पकडे जाने पर यातनाओ का एक दौर चलता था जिसे सोच कर आज भी उसकी रूह काँप उठती है. सुमन केवल अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकती थी.
वो २३ दिसंबर की रात थी जब राधा बाई ने उसे बुलाकर कहा, सुमन एक बहुत आमिर कस्टमर है उसके पास तुमको तीन दिन रहना है. फिर राधा बाई का आदमी उसे छोड़ आया था वर्ली के उस होटल में. सुमन के लिए ये रोज़ जैसा काम था वो बेझिझक कमरे में चली गयी. और आराम से सोफे पर बैठ गयी...उस आदमी ने बार बार सुमन को देखा फिर राधा बाई के आदमी को पैसे दिए और कहा की २५ को शाम को छोड़ देगा.राधा बाई के आदमी के जाते ही…बड़े ही शांत तरीके से उसने पूछा, तुम्हारा नाम क्या है? रिया, सुमन ने जवाब दिया...ये उसे राधा बाई का दिया नाम था और धंधे का उसूल था की अपना असली नाम कभी नहीं बताना, यही इस्तेमाल करना होता था. उसने मुस्कुरा कर कहा, अच्छा अब बताओ तुम्हारा असली नाम क्या है? सुमन चौंक गयी पर अपने भाव छुपाते हुए उसने कहा, अरे मेरा असली नाम रिया ही है अगर विश्वास न हो तो मेरा आई कार्ड देख सकते है ...उसने फिर मुस्कुराते हुआ कहा, नहीं ठीक है तुम कहती हो तो मान लेता हूँ. आज सुमन को पहली बार कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था. पिछले १० सालो में उसका वास्ता इंसानो से नहीं, जानवरों से भी बदतर लोगो से पड़ा था. जो उसे एक बेजान वस्तु समझ कर इस्तेमाल करते थे बिना उसकी तकलीफों की परवाह करे. शराब के नशे में चूर घिनौने लोग, यहाँ तक कभी कभी उसे हिंसा का सामना भी करना पड़ता, लोग पैसे दे कर उसके शरीर को नोच डालते थे, ये भी भूल जाते थे की वो भी एक इंसान है उसे भी काटने से दर्द होता है. एक बार एक शेख ने उसे सिगरेट से जला दिया जगह जगह वो चीखती और शेख खुश होता.घर जा कर राधा बाई को हक़ीक़त बताई तो उसने कहा देख मेरी बच्ची उस शेख ने जितने पैसे दिए है न उसमें तो विदेश जा कर भी अपना इलाज करवा सकती है ये छोटे मोटे घाव तो दो चार दिन में भर जायेंगे पर ऐसा कस्टमर फिर नहीं मिलेगा....आप क्या लेंगी....सुमन फिर चौंक उठी 'आप' सुनकर...तू तड़ाक और गालियां सुनने के आदी कानो को सहज ही भरोसा नहीं हो रहा था फिर भी उसने कहा थैंक यू में ड्रिंक नहीं करती..फिर मुस्कुराते हुए वो बोला सुनो घबराने के जरूरत नहीं मुझे एक कंपनी चाहिए अपन समय बिताने के लिए तुम भी मेरे जैसी ही हो बेझिझक और बेपरवाह रहो...मैं कोई जानवर नहीं हूँ...सुमन मन ही मन सोचने लगी…हाँ दिखते तो सब इंसान जैसे ही है पर हक़ीक़त कौन जाने…बड़ी ज़िद के बाद सुमन ने अपने लिए कोक मंगाई. धीरे धीरे सुमन ने महसूस किया की ये इंसान अब तक मिले सारे कस्टमर से बेहतर है काम जानते हुए और वो भी तब जब उसने पूरे तीन दिन के पैसे भी दे दिए ४ घंटे बाद भी बेहद शालीनता से पेश आ रहे इस इंसान में सुमन की भी दिलचस्पी बढ़ने लगी...एक लम्बा अंतराल बीत गया उस कस्टमर ने सुमन के लिए खाना मंगाया. सुमन ने बातों बातों में उसके गिलास से कुछ घूंट व्हिस्की पी ली…अब सुमन भी उससे बात करके अच्छा महसूस कर रही थी...थोड़ी देर बाद सुमन भी काफी व्हिस्की पी चुकी थी…नशे में ही उसने कहाँ, सुनिए आपने इतना समय यूँही बिता दिया क्यों कुछ करना नहीं है क्या? फिर वही मीठी सी मुस्कान के साथ उसने जवाब दिया.. कर तो रहा हूँ तुमसे ढेर सारी बात तुम्हारे साथ इतना बेहतर वक़्त बिता रहा हूँ तुमको जानने की कोशिश कर रहा हूँ...सुमन ने थोड़ा सा रूखे लहजे में जबाब दिया.. क्यों क्या करेंगे मेरे बारे में जानकारी हासिल करके? आप कोई पत्रकार या टीवी वाले है जो मेरी कहानी जानकार कल छाप देंगे? नहीं में भारत सरकार के लिए काम करता हूँ...क्या काम, सुमन ने पूछा. वो नहीं बता सकता, मजबूरी है. सुमन ने कहा, छोड़ों मुझे क्या करना है...मेरा इतना बढ़िया समय पास हो रहा है जो कम से कम उस चुड़ैल राधा बाई के पास रहने से तो कई गुना बेहतर है. सुमन अब सोफे से उठकर बेड पर उसके करीब आ कर बैठ गयी और उसने एक सिगरेट जला ली…तुम सिगरेट भी पीती हो...हाँ कभी कभी जब आप जैसे अच्छे लोग मिल जाते है..वो हंसकर बोला अच्छे लोग?..में अच्छा हूँ तुमको कैसे मालूम? सुमन साहब रोज़ दुनिया से पाला पड़ता है इतना तो समझ सकती हूँ. बातों का सिलसिला और पीने का दौर चलता ही गया ...और इस दौरान सुमन ने अपने जीवन का सारा सत्य सब कुछ उगल दिया, सुबह के ५.०० बज रहे थे और पी कर निढाल हो सुमन बिस्तर पर गिर पड़ी..अचानक किसी ने उसे पकड़ कर उठाया तो ...देखा वही कस्टमर जिसने अपना नाम आनंद बताया था उसे जगाने की कोशिस कर रहा था ..२ बज चुके है उठो क्या लंच नहीं करना कब से सो रही हो.सुमन का सर बिलकुल भारी हो गया था रात को इतना पी लेने से... सुमन उठ कर वाशरूम में चली गयी. उससे फिर सब हक़ीक़त याद आई की वो कहाँ है और क्यों? पर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ की एक रात बीत जाने के बाद भी उसके साथ कुछ नहीं हुआ था. सुमन नहा कर बहार निकली तो लंच तैयार था…दोनों ने मिलकर लंच किया. सुमन इतने ज़िंदादिल कस्टमर को पहली बार पाकर बेहद खुश थी.
आज पहली बार उसे आदमियों में थोड़ा दिलचस्पी हो रही थी..सुमन तुम्हारी कहानी बेहद दर्दनाक है. सच पूछो तो मुझे भी एक आत्मग्लानि होती है की में भी उसी तंत्र का एक हिस्सा हूँ. सुमन क्या तुम नहीं चाहती की तुम अपने गांव वापिस जाओ...इस दलदल से निकल कर एक बेहतर ज़िन्दगी शुरू करो. सुमन की आँखों से आंसू छलक उठे थे इसलिए नहीं की उसके घर की बात हुई थी इसलिए की एक इंसान ने आज पहली बार उससे पूछा था की क्या वो अपने घर जाना चाहती है...काफी देर तक रोने के बाद उसने कहा, सर मैं इस बाजार में जबरन धकेल दी गयी मै इस दलदल में कभी रहना नहीं चाहती पर आज तक कोई मिला नहीं जो मुझे इस दलदल से निकलने मे मेरी मदद कर सके. और अब मेरा पूरा परिवार मेरी कमाई पर चलता है अगर घर गयी भी तो क्या कर पाऊँगी एक छोटा सा प्लाट है गाँव में उसी पर घर है पर माँ की दवा भाई की पढ़ाई ये सब कैसे होगा..काश में निकल पाती इस दलदल से इन बेरहम लोगों की दुनिया से. आनंद की नम आँखों को पढ़ पा रही थी सुमन..लंच के बाद आनंद ने सुमन की आँखों में देखते हुए कहा सुनो सुमन, तुम एक बेहद अच्छी इंसान हो जो तुम्हारे साथ हुआ उसे भूल जाओ और एक नयी ज़िन्दगी शुरू करो. तुमको जितनी मदद चाहिए में करूँगा. तुम अपने गाँव को भी छोड़ कर कहीं और चली जाओ और नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करो. तुम सोच के मुझे बताओ की तुम क्या करना चाहती हो और उसके लिए तुमको क्या चाहिए…सुमन जड़वत होकर ये सुन रही थी उसे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था..फिर भी उसने कहा ठीक है में सोच कर बताउंगी...
२५ दिसम्बर पुरे मुंबई में क्रिसमस की रौनक थी और वही जगमगाहट सुमन को अब अपनी ज़िन्दगी में भी दिखाई दे रही थी,सुमन ने आनंद का मोबाइल नंबर लिया और उससे विदा ली जाते जाते वो ये कहना नहीं भूली "सर ये तीन दिन मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन दिन थे"..आनंद बस मुस्कुरा कर रह गया. सुमन ने राधा बाई को एक महीने की छूटी ले कर माँ के इलाज़ के लिए गांव जाने की बात कही. राधा बाई जानती थी की अगर सुमन को रोके रखना है तो क्या करना है उसने कहा देख सुमन मैं पैसे तो तुझे पुरे अभी नहीं दूंगी तू १०००० लेले अभी, बाकि के तेरे पैसे जब तू वापस आ जाएगी तब तुझे दे दूंगी. सुमन के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था उसने राधा बाई की बात स्वीकार कर ली और वो अपने गाँव मेरठ के लिए निकल पड़ी.
पूरी ट्रैन में सफर के दौरान वो सोचती रही की क्या जो हो रहा है वो सच है कोई सपना तो नहीं...सुमन को लगा की चलो आनंद को फ़ोन किया जाए. फ़ोन की घंटी बजती रही१..२.३.४.५.बार पर फ़ोन किसी ने नहीं उठाया. सुमन का दिल डूब गया उसे लगा की आनंद भी बाकि लोगों की तरह एक फ्रॉड निकला. उसने भी उसके भोले भाले मन के साथ खिलवाड़ किया…मन घृणा और विषाद से भर गया एक बार लगा कि यही से उतर कर वापस चली जाए पर माँ भाई से मिलने की खातिर दुखी मन से अपने गांव पंहुची. शाम को अपने आधे कच्चे आधे पक्के मकान के बरामदे में बैठी सुमन ऐसे ही ऊंघ रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी उसने फ़ोन उठाया तो देखा आनंद का फ़ोन था.उसने खुशी से फ़ोन उठाया..माफ़ करना सुमन में तुम्हारा फ़ोन नहीं उठा पाया क्यूकि एक मीटिंग में व्यस्त था. सुमन हंसकर बोली अरे सर कोई बात नहीं बस मैंने फ़ोन इसलिए किया था की में घर पंहुच गयी हूँ बताने के लिए. सुमन ने जान बुझ कर अपने भविष्य के बार में कुछ नहीं कहा वो देखना चाहती थी की क्या आनंद अब भी उतना ही सीरियस है या वो सब कुछ खाली उसे बहलाने के लिए कहा था उसने.."सुमन अच्छा बताओ तुमने क्या सोचा" ये सुन कर मन ही मन मुस्कुराते हुए सुमन ने महसूस किया कि नर ही तो नारायण है. खुशी में डूबी सुमन ने कहा की सर सोच कर बताती हूँ. अच्छा ठीक है मुझे बता देना और अपना ध्यान रखना.सुमन ने पिछले ३ हफ़्तों में किसी तरह कोशिश कर अपनी जमीन और घर का सौदा पक्का कर लिया था और उसने फरीदाबाद में जाकर एक घर जिसमें दुकान थी वो भी देख लिया था. सुमन को जितने पैसे मिले थे सुमन उसमें केवल घर खरीद सकती थी. अब उसे दुकान को सजाने और चलाने के लिए भी कुछ पैसे चाहिए थे. सुमन ने सब हिसाब लगा कर देखा की उसे २.० लाख रुपयों की जरूरत है. ये बड़ी रकम थी कोई कैसे दे सकता था. फिर भी सुमन ने डरते डरते अपनी बात आनंद को बता दी. आनंद ने उसकी बात सुनी और बोला कि तुम क्या करोगी उस दुकान में ..सुमन ने कहा कि वो एक जनरल स्टोर खोलना चाहती है. आनंद ने सुमन से उसका बैंक अकाउंट नंबर लिया और २.० लाख रपये उसके आकौंट में ट्रांसफर कर दिए. सुमन को अगले दिन अपने अकाउंट में पैसे मिले तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. सुमन अपना घर बेच कर फरीदाबाद आ गयी उसने आनंद के दिए पैसों से एक जनरल स्टोर खोल लिया. उसका उदघाटन वो चाहती थी कि आनंद से करवाये पर व्यस्तता का बहाना बना कर आनंद नहीं आये. सुमन ने आनंद के कहने पर अपना फ़ोन नंबर भी अब बदल दिया.
सुमन का जनरल स्टोर चल निकला और सुमन एक बेहतर ज़िन्दगी जीने लगी..एक अजीब बात सुमन को खाए जा रही थी कि आनंद अब उसके फ़ोन नहीं उठा रहा था. लगभग एक महीना हो गया था. एक दिन सुबह सुबह उसे फ़ोन पर एक सन्देश मिला जो की आनद का था "हेलो सुमन कैसी हो उम्मीद है तुम ठीक होगी और तुम्हारा काम भी ठीक चल रहा होगा. सुमन तुम शायद नाराज़ होगी क्यूकी मैंने तुम्हारे काल का जबाब नहीं दिया. दरअसल सुमन में अब चाहता हूँ कि जो भी तुम्हारा पिछला जीवन था यहाँ तक कि मैं भी तुम वो सब भूल जाओ. और एक नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करो...इसलिए आज के बाद हम एक दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे और रही मेरे पैसों की बात तो आज तक मैंने अपने जीवन में पैसा शायद बर्बाद ही किया पर उसका सही इस्तेमाल आज कर पाया हूँ. मैंने जो भी पैसा तुमको दिया है उससे तुम किसी और की मदद करना और जब तुम ऐसा करोगी तो समझना की तुमने मुझे मेरे पैसे मुझे लौटा दिए. सुमन की आँखों से आंसू छलछला उठे ये ख़ुशी के थे या दुःख के सुमन समझ नहीं पा रही थी. क्या दुनिया में आनंद जैसे लोग भी होते है..और उसने अपने अंदर एक गूंजती हुई आवाज सुनी, हाँ हाँ...ऐसे ही लोग है जिनके भरोसे आज भी जीवन और सुख दोनों विध्यमान है.
समय कैसे बदल जाता है कोई नहीं जान पाता 6 साल बीत गए सुमन ने अपने जनरल स्टोर के साथ साथ अपनी प्राइवेट पढ़ाई भी पूरी की और अगले महीने उसकी शादी होने वाली है. छोटा भाई विक्रम अब इंजीनियर हो गया है. सुमन की शादी अभिनव से हो रही है जो भारतीय सेना में काम करते है. सुमन का पिछला जीवन अब ख़त्म हो गया है ..बुआ एक सड़क हादसे में चल बसी और अब उसे कोई जानता भी नहीं की वो कौन है और कहाँ रहती है. उसने आनंद से एक वादा किया था की वो उसकी बात का सम्मान करती है और कोई सम्बन्ध नहीं रखेगी लेकिन जब भी उसका अपना जीवन बसा वो उस दिन उसे एक सन्देश जरूर भेजेगी ..इन ६ सालों मे सुमन और आनंद के बीच कोई बात नहीं हुई...कुर्सी से उठकर सुमन ने अपना फ़ोन लिया और अपना सन्देश लिखा "आनंद अगले महीने मेरी शादी होने जा रही है ये बात तुमको बतानी थी इसीलिए ये सन्देश लिख रही हूँ. जानती हूँ अब शायद हम कभी नहीं मिल पाएंगे मेरा तुमसे मिलने का कितना मन करता है ये शायद ईश्वर जनता है या समझता होगा पर में तुम्हारी आज्ञा की अवहेलना कभी नहीं करुँगी इसलिए अब तुमको उस हर ईश्वर में देखा करुँगी जिसे भी में अपने घर में या मंदिर में रोज पूजा करुँगी.तुम्हारा एक बात के लिए धन्यवाद करना चाहूंगी कि तुमने पुरुषो के बारे में मेरी धारणा को फिर से बदल दिया वरना में दाम्पत्य जीवन के बारे में सोच भी नहीं सकती थी आनंद, तुम वो पहले व्यक्ति हो जिसने मेरे साथ सही मायनो में सहवास किया..श्रेष्ट और उत्तम सहवास... मन का सहवास...जिसका आनंद जन्मजन्मांतरों तक मुझे भिगोता रहेगा आहलादित करता रहेगा, तुम्हारे सुख मय जीवन की कामना करती हूँ और वादा करती हूँ कि मै भी मानवता को जीवित रखने का प्रयास करती रहूंगी"
सुमन
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